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एक दूसरे के अनुपूरक होकर भी - कुमार रजनीश

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मैं और तुम एक - एक कोना पकड़े बैठे हैं अपने मोबाइल के दुनिया में गुम। रिश्तों के नाम पर ये झल्ली-सी, इंटरनेट की रिश्तेदारियों में व्यस्त, किसको ढूंढ रहे, कुछ पता नहीं। मैं भी समेटे अपने आप को और तुम भी अपने दोनों पैरों को मोड़ें हुए कुछ मंद मंद मुस्कान लिए, न दिखाई पड़ती हुई रिश्तों को, सुई धागों की तरह सिल रहें, रफ्फू करते हुए, फटे चादर की तरह। ये बीच बीच में घूंट-घूंट पानी पीने की आवाज़ हम दो शरीर को जीवित होने का एहसास करा रहा था। शून्य की सीमा से परे शायद कुछ ढूंढने की ही बरबस कोशिश थी। कुछ तलब थी, न मिल पाने वाले की चाह की। गौरतलब हो कि दो दिलों की धड़कन, अभी भी हमारे होने का एहसास करा रही थी। उसका और मेरा। कभी एक पल दीवारों को टक टकी लगाना फिर कुछ अपने अंदर समाए, भाव भंगिमाओं को,  समेटते हुए, फिर अपने बनाए दुनिया में कुछ ऐसे गुम हो गए जैसे दो अजनबी बैठे हो आस - पास न जानने के लिए,  न कुछ समझने के लिए। कभी अनुभव किया है ? जब दो लोग एक दूसरे के अनुपूरक होकर भी, अनजान से दो अलग रास्तों को जन्म देते हैं? उसकी दशा और दिशा देखने के लिए आप खुद को

सहभागिनी भी और संगिनी भी।

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वह सहभागिनी भी है और संगिनी भी।  उसके हाथ ईट के चूल्हे भी बनाते हैं और पति के साथ दिहाड़ी पर ईट भी ढोते हैं। इस कोहरे - से ढके सुबह में अपने बच्चे और पति को चूल्हे पर पकी, गर्मागर्म रोटी खिला रही है और साथ ही अपने लिए टिफिन का बंदोबस्त भी कर रही है। खुद पतली-सी शॉल ओढ़े, अपने पति और बच्चे को सिर से पैर तक मोटे उनी कपड़े से ढक रखी है। उसने अपने थाली में लाल मिर्च-नमक और रोटी, नाश्ते के लिए रखा है और पति और बच्चे के लिए थाली में, तरकारी, अचार और रोटी सजा रखी है। इन सबके बीच, उसके चेहरे पर तेज़ है, खुशी है और एक प्रकार की संतुष्टि है। यह चमक और तेज शायद इसलिए क्योंकि वो अपनी जिम्मेदारियों को बहुत अच्छे से निभा पा रही है। अरे ये क्या? दूर से ये कैसी आवाज आ रही है? कुछ सभ्रांत परिवार के महिलाओं की आवाज - नारी सशक्तिकरण के लिए महिलाएं जागे! अपना हक मांगे, इस समाज से। जागो बहन जागो! इन सभी को आकर इस 'एंपावर्ड' महिला से बहुत कुछ सीखने की ज़रूरत है या इसे भी अपने साथ बर्गलाने की जरूरत है? ये हम सबके दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। पर एक बात तो है कि जब तराजू पर महिला
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जब भी सुबह खिड़की खोलो, तो सुबह वाली खुशियों को अन्‍दर आने देना। देखना कि उसी के साथ, छोटे बच्‍चों की किलकारियाँ भी साथ आएं, जो नई ऊर्जा के साथ, चहकते हुए अपने नन्‍हें कदमों से स्‍कूल जा रहें हों। जब भी सुबह खिड़की खोलो, तो ध्‍यान से सुनना कि कोयल की आवाज, जो तुम्‍हारे कान में मिश्री घोल रही हो। बड़े चाव से अपनी पंखुड़ियों को फैलाए, उस मुनिया को देखना जो फूलों पर मंडराती हो। जब भी सुबह खिड़की खोलो, तो अपने चेहरे को दोनों हाथों से थामे चौखट पर खडे हो, ठंडी, उन्‍मुक्‍त हवाओं को अपने अन्‍दर भरने देना, कि करना, एक नया अहसास, अपने खुलेपन का। जब भी सुबह खिड़की खोलो, तो पीपल के पत्‍तों से उन ओस की बूंदों को, मोतियों के समान अपनी हथेलियों पर चुनना। हो सके तो अनुभव करना, एक अनुपम अनुभूति का, और समेट लेना उसे अपने मन और मस्तिष्‍क में। जब भी सुबह खिड़की खोलो, तो सूरज की किरणों को आने देना, अपने झरोखों से, जो नई ऊर्जा का विस्‍तार करेगी, तुम्‍हारे जीवन में, सुनहरे भविष्‍य की तरह। हो सके तो उसके हल्‍के स्‍पर्श के ताप को अपने अन्‍दर समाहित करना, और तरो-ताज़ा करना अपने अंतर्

Journey to Kashmir – A short trip with beautiful memories.

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Intensifying the beauty of Himalayas in the northernmost part of India, Kashmir valley is an apt place to witness nature in its own form. Surrounded by the snow-capped mountains, the implausible beauty of Kashmir leaves an everlasting impression on one’s mind. There are a number of reasons to satisfy the above heading; ranging from the waterfront gardens, the Chinar trees, awe-inspiring lakes and the sumptuous weather. The people over here are very polite and are known for their hospitality. It is said that the people of Kashmir welcome everyone with a sense of unity and immense brotherhood. People in Kashmir are a little bit introverted but the hospitality one will receive here is awe inspiring. Such people can only be found in ‘Heaven’, like Kashmir.           The unparalleled alpine beauty of the mountain ranges and the waterfalls flowing along are undoubtedly a breathtaking experience. Owing to its scenic beauty and naturally created sites, Kashmir is a perfect pick to cheris

रावण के दर्द को महसूस किया है.....

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मैंने महसूस किया है उस जलते हुए रावण का दुःख जो सामने खड़ी भीड़ से बारबार पूछ रहा था..... " तुम में से कोई राम है क्या ?" मैंने महसूस किया है उस जलते हुए रावण का दुःख जब भीड़ से कुछ भी जवाब न मिला तो रावण फिर एक बार उदास हो अपने आँशुओं को पोछते हुए सिर्फ यहीं बुदबुदा पाया की काश! राम होते तो रावण का क़द्र करना जानते यहाँ तो सभी अपने अंदर के रावण को मार नहीं सकते इसलिए मेरा पुतला बना , अपने अहंकार को जगा , अंदर के आग को और भड़का मुझे जलाने में लगे हैं मैंने महसूस किया है उस जलते हुए रावण का दुःख जब मंच के पीछे बैठा एक गरीब रावण के आवाज़ में दहाड़ता है तो उसे अपने भूख मिटने का एहसास होता है जब-जब रावण जलेगा तब-तब उसकी जीविका चलेगी रावण तो हर बार जलना चाहिए , परन्तु किसी राम के हाथ , न की ' राम ' रुपी रावण के हाथ मैंने महसूस किया है उस जलते हुए रावण का दुःख ( ऊपर के पांच पंक्ति किसी और से लिया गया गया है)

मातृत्व: Motherhood

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The moment a child is born, the mother is also born. She never existed before. The woman existed, but the mother, never. A mother is something absolutely new.

एक एक टुकड़ा जोड़कर……

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एक एक टुकड़ा जोड़कर कुछ बनाया था नहीं था आसां कठिन फिर भी न होने दिया सपने बुनकर संजोया था बड़े प्यार से जिसे मान लिया हमने अपना 'जहां' हर पल जीवन जीने के लिए क्या पता था टुकड़े-टुकड़े में बिख़र जायेगा ये अपना 'जहां' युहीं छुट जाएगा क्यों कोई सुन्दर सपना भरमा गया मुट्ठी से फिसलती रेत की तरह छुटता चला गया न जाने किस 'जहां' में - कुमार रजनीश